पहले रचनात्मक संकल्पक विश्वधर्मी प्रा. डॉ. विश्वनाथ कराड, डॉ. एस. एन. पठाण, पूर्व कुलपतिअयोध्या में श्री राम मंदिर अत्यंत भव्य ७० एकड भूमि पर बनना चाहिए और मुसलमानों को मस्जिद के लिए उचित स्थान पर ५ एकड भूमि मिलनी चाहिए. ऐसा संकल्प विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ कराड ने २०१० में किया. अत्यंत संवेदनशील एवं धार्मिक रूप से विभाजनकारी समस्या के समाधान हेतु प्रो.डॉ. विश्वनाथ कराड ने पुणे, अयोध्या और दिल्ली में विभिन्न धर्मों के सम्मलेन आयोजित किये. इस अवधारणा को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया. श्रीराम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए नियुक्त मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश खलीफुल्लाह का ेभी प्रस्ताव सौंपा गया. उनकी रचनात्मकता सफल हुई और ९ नवंबर २०१९ को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और देश ने राहत की सांस ली. हाई कोर्ट का पूरा सम्मान करते हुए मै कहना चाहूंगा कि प्रो. डॉ. कराड के इस रचानात्मक प्रयास से अयोध्या में ७० एकड भूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हुआ. साथ ही मुसलमानों को मस्जिद के लिए उपयुक्त स्थान पर ५ एकड जमीन दी गई. सुप्रीम कोर्ट फैसले के बाद विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड की प्रतिक्रिया बहुत प्रभावशाली थी. उन्होंने कहा ओह ये भगवान की इच्छा थी कि मंदिर ७० एकड जमीन पर बने. इसमें मैं करनेवाला कोई नहीं हूं. मै तो केवल एक बहाना हूं. इसी संदर्भ में राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.एस.एन.पठान का विस्तृत लेख.
यह घटना करीब १२ साल पहले की है. प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड, डॉ. विजय भटकर और मैं (प्रस्तुत लेखक) एक बैठक के लिए सुबह-सुबह मुंबई के लिए रवाना हुए थे। बाहर झँाकते हुए कराड साहब ने मुझसे कहा, डॉ. पठाण! क्या यह पुणे-मुंबई एक्सप्रेस हाईवे है? हम अपना रास्ता तो नहीं भूल गए? तो मैंने कहा, “नहीं सर! यह एक्सप्रेस हाईवे है”। तब कराड साहब ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘अरे, फिर सड़क पर कोई वाहन कैसे नहीं है? वह दिन ३० सितंबर २०१० था. मैंने कहा, ‘सर, आज ’श्रीराम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद’ पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आने वाला है। मामला बेहद संवेदनशील है और फैसले के बाद देश में गडबडी की आशंका है। दंगे भी हो सकते हैं। इसलिए आज कोई भी यात्रा का जोखिम नहीं उठा रहा है।
यदि श्रीराम मंदिर बनाना है तो कम से कम ६० से ७० एकड़ जमीन की आवश्यकता होगी। उस २.७७ एकड़ में क्या होगा?अब तक शांत बैठे डॉ. विजय भटकर ने दो टूक कहा, सच तो यह है कि ‘श्रीराम का मंदिर’ का मतलब सभी भारतीयों के लिए ‘मानवता भवन’ है। हमारी काफी चर्चा हुई और हम इस बात पर सहमत हुए कि श्रीराम का भव्य मंदिर भारतीयों के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम मानवता भवन है। इस अवधारणा पर हम तीनों सहमत थे।
बुद्धिजीवी परिषद में सर्वसम्मति से प्रस्ताव
मुंबई से लौटते ही डॉ. कराड ने पुणे के चुनिंदा वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों, दार्शनिकों और शिक्षाविदों की एक बैठक बुलाई। मुझे अभी भी याद है, उस मीटिंग में २५ से ३० जानकार और वरिष्ठ लोग मौजूद थे। मा. डॉ.रघुनाथ माशेलकर, मा. डॉ. विजय भटकर, मा. डॉ. मोहन धारिया (आज जीवित नहीं), मा. पुणे मेयर श्री राजपाल सिंह और इस्लामिक विद्वान श्री.अनीस चिश्ती आदि विचारकों, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों ने भाग लिया।
श्रीराम मंदिर-बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल पर दो घंटे की चर्चा के बाद हमने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया कि, अयोध्या में विवादित स्थल पर “विश्वधर्मी श्रीराम मानवता भवन” का निर्माण किया जाना चाहिए। यह प्रस्ताव तत्कालीन माननीय द्वारा पारित किया गया था। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, भारत सरकार और मा. गृहमंत्री से लेकर विश्व हिंदू परिषद के मा. श्री अशोक सिंघल, श्री. वेदांती महाराज आदि। सभी को भेजा और आगे मा. कराड सर ने सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने तक इसी संकल्पना पर काम किया. वह इस अवधारणा से भारित थे।
सरसंघचालक जी से भेंट
प्रस्ताव पर संतोष व्यक्त करते हुए मा.सरसंघचालक भागवत साहब ने कहा कि श्रीराम मंदिर का निर्णय ‘साधु-संत संसद’ करती है और इसलिए मेरे लिए हस्तक्षेप करना कठिन है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से आपके प्रस्ताव से सहमत हूं। खास बात यह है कि उन्होंने हमारे प्रस्ताव को पूरी तरह समझने के लिए हमें एक घंटे का समय दिया था।
२४ मई २०१४ को ७ लोगों का प्रतिनिधिमंडल प्रो. डॉ. कराड सर के नेतृत्व में अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। इस प्रतिनिधिमंडल में मा. डॉ. कराड सर, डॉ. विजय भटकर, डॉ. संजय उपाध्ये, डॉ. सुचित्रा नागरे और मैं शामिल थे।
रामलल्ला के दर्शन के लिए कड़ी सुरक्षा
हम प्रातःकाल श्रीराम-लल्ला के दर्शन करने गए। श्रीराम जन्मभूमि में प्रवेश के दौरान कड़ी सुरक्षा थी. हर व्यक्ति को जांच के बाद ही अंदर जाने दिया गया। अंदर जाने के बाद हमें लगा कि हमारा रास्ता लोहे के पिंजरे से होकर गुजर रहा है। इसके अलावा हथियारबंद गार्ड हमारे साथ चल रहे थे। यह ऐसी स्थिति थी कि कोई भी आश्चर्यचकित हो सकता था कि १०० करोड़ हिंदुओं की श्रद्धा और आस्था के केंद्र श्री रामलल्ला के दर्शन की ऐसी व्यवस्था कैसे की जा सकती है। संपूर्ण रक्षा प्रणाली एक प्रकार से तनावपूर्ण थी।
विश्वधर्मी श्रीराम मानवता भवन
२१ मार्च २०१७ को देश की सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया कि श्रीराम मंदिर और बाबरी मस्जिद का मसला कोर्ट के बाहर सुलझाया जाए। उस समय विश्वशांति केन्द्र की ओर से प्रो. डॉ. कराड सर ने सुप्रीम कोर्ट में इंटर्वेन्शन पिटीशन दायर की थी और सुप्रीम कोर्ट ने हमारी सभी दलीलें सुनीं, लेकिन इतनी विलंब से याचिका मान्य करने से इनकार कर दिया। दुर्भाग्य से, चूंकि तीन याचिकाकर्ताओं यानी रामलल्ला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच कोई समझौता नहीं हुआ, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अंततः एक मध्यस्थ समिति नियुक्त करने का फैसला किया।
दिल्ली में सम्मेलन का आयोजन
दिल्ली में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में मैं स्वयं, मा. आरिफ मुहम्मद खान, मा. वेदप्रताप वैदिक, श्री. राम विलास वेदांती महाराज, प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड, मा. डॉ. विजय भटकर एवं मा. श्री. वहीदुल्लाह अंसारी इन महानुभावों ने कहा कि, दुनिया में विभिन्न धर्मों की शरणस्थली भारत को दुनिया के सामने भारतीय संस्कृति का आदर्श रखना चाहिए और २१ वीं सदी में भारत ‘विश्व गुरु’ बनने जा रहा है, इसे ध्यान में रखते हुए ६७.३ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि के साथ-साथ विवादित २.७७ एकड़ भूमि पर सरकार, कुल ७० एकड़ भूमि पर ’विश्वधर्म श्रीराम मानवता’ का भवन खड़ा कर एक आंतरराष्ट्रीय भव्य स्मारक बनाया जाए ऐसा अभिनव विचार दिल्ली में इस सम्मेलन में विश्वनाथ कराड सर ने प्रस्तुत किया। यह सम्मेलन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर २ अक्टूबर २०१७ को ‘कांस्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्ली’ में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में कई कुलपति, सेवानिवृत्त चार्टर्ड अधिकारी, सेवानिवृत्त राजदूत, पत्रकार, वैज्ञानिक और कई बुद्धिजीवी उपस्थित थे। (आज जीवित नही) उस समय सर्वसम्मति से अयोध्या में ७० एकड़ भूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर (श्रीराम भवन) बनाने और मुसलमानों के लिए ५ एकड़ भूमि देने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
३० सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल
प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड की अध्यक्षता में एक प्रतिनिधीमंडल फिर अयोध्या पहुँचा। इसमें अनेक धर्मों के गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित थे।
१८ मार्च २०१९ को मा. सुप्रीम कोर्ट ने (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति खलीफुल्लाह साहब की अध्यक्षता में एक मध्यस्थता समिति नियुक्त की। मा. कराड साहब ने विश्वशांति केंद्र की ओर से खलीफुल्लाह समिति को एक प्रस्ताव सौंपा कि ७० एकड़ भूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण किया जाए और मर्यादा पुरूषोत्तम ‘श्रीराम मानवता भवन’ के नाम पर ‘पवित्र कुरान ज्ञान भवन’ यानी मस्जिद के लिए ५ एकड़ जमीन दी जाए. विशेष रूप से, १५ जून २०१९ को (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति मा. खलीफुल्ला साहब ने हमें मीटिंग के लिए लखनऊ बुलाया। उस समय मा. (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति खलीफुल्लाह मा. डॉ. विश्वनाथ कराड साहब, डॉ. विजय भटकर, श्री. आरिफ मोहम्मद खान, डॉ. चंद्रकांत पांडव, डॉ. राजीव शारदा, डॉ. अनामिका वडेरा और मैं डॉ. एस. एन. पठान हम मौजूद थे। मा. कराड साहब ने ‘श्रीराम मानवता भवन’ का प्रस्ताव विस्तार से प्रस्तुत किया। सरकार द्वारा अधिग्रहीत ६७.३ एकड़ भूमि श्री राम मंदिर के लिए खोली जाए तथा पूर्व में विवादित २.७७ एकड़ अर्थात कुल लगभग ७० एकड़ भूमि पर भव्य श्री राम मंदिर (श्रीराम मानवता भवन) तथा ५ एकड़ भूमि दी जाए। मुस्लिम भाईयों को उचित स्थान पर पवित्र कुरान ज्ञान भवन हेतु पुनः इस प्रस्ताव पर जोर देते हुए सभी सदस्यों के साथ प्रस्तुत किया गया। हमारे प्रस्ताव को सुनने के बाद, मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष (सेवानिवृत्त) न्यायाधीश माननीय ने कहा कि उक्त प्रस्ताव एक बहुत ही ‘अध्ययन योग्य प्रस्ताव’ और ‘उत्तम प्रस्ताव’ है।
बोया हुआ मीठा बीज पेड़ बन गया
इसके बाद मा. मुख्य न्यायाधीश मा. रंजन गोगोई की बेंच ने जिसमें मा. न्यायमूर्ति शरद बोबडे, माननीय न्यायमूर्ति डी. वाई चंद्रचूड़, माननीय. न्यायमूर्ति अशोक भूषण एवं मा. जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे, उनकी की बेंच ने ९ नवंबर २०१९ को अपना फैसला सुनाया और कई सालों से देश की गर्दन पर बैठा ये मुद्दा हमेशा के लिए सुलझ गया। कोर्ट के फैसले का पहला हिस्सा यह था कि केंद्र सरकार आसपास की ६७.३ एकड़ अधिग्रहित जमीन और विवादित २.७७ एकड़ जमीन में से कुल ७० एकड़ जमीन श्री राम मंदिर को दे और ५ एकड़ जमीन श्री राम मंदिर को दे.” महत्वपूर्ण स्थल पर मुस्लिम भाइयों का इबादतगाह है।
२०१० से अयोध्या में श्रीराम मंदिर ७० एकड़ जमीन पर बनाया जाए और मस्जिद के लिए ५ एकड़ जमीन मुसलमानों को दी जाए, इस संकल्पना की पहल डॉ. विश्वनाथ कराड सर ने पहली बार की। इसके लिए पुणे, अयोध्या और दिल्ली में सम्मेलन आयोजित किए गए। इस संकल्पना को सर्वोच्च न्यायालय एवं मा.न्यायालय में प्रस्तुत किया गया । श्रीराम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर मध्यस्थ समिति के अध्यक्ष रहे (पूर्वं) न्यायमूर्ति खलीफुल्लाह को प्रस्ताव सौंपा गया। उनकी रचनात्मकता सफल हुई और ९ नवंबर, २०१९ को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और देश ने राहत की सांस ली। मा. उच्चतम न्यायालय का पूरा सम्मान करते हुए मैं कहना चाहूँगा कि प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड सर के इस रचनात्मक प्रयास के कारण अयोध्या में ७० एकड़ भूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हुआ है और मुसलमानों को मस्जिद के लिए ५ एकड़ भूमि दी गई है।
कराड साब! आप को जल्दी आना था!
अयोध्या बाबरी मस्जीद के विवाद पर पहले याचिका दायर करनेवाले श्री. हाशिम अंसारी का घर बहुत करीब था। मीटिंग हॉल में अंसारी साहब को ऐसा लगा जैसे शरपंजरी गिर पड़ी हो। वे बीमार थे। एक-दूसरे का परिचय (सलाम दुआ) कराने के बाद कराड साहब ने कहा, अन्सारी साहब, आज रामलल्ला का दर्शन करके मन बहुत व्यथित हुआ। उस पर हाशिम अंसारी जी ने कहा, कराड साहब आपने बहुत देर कर दी। मैं रामलल्ला को धूप में नहीं देख सकता। यह कहकर वे रोने लग गए। हाशिम अंसारी को श्रीराम मंदिर के लिए रोते हुए देखकर मा. कराड साहब भी अपने आंसू नहीं रोक पाए और फिर हम सभी की आंखों से आंसू बहने लगे।