January 2024

तालुका पदाधिकारी यांना नियुक्ती व ओळखपञाचे वाटप

न्हावरा // सुजित मैड


           द युवा ग्रामीण पञकार संघ महाराज्य शिरूर तालुका आयोजित मराठी दिनदर्शिका २०२४ चे प्रकाशन व शिरूर तालुका कार्यकारणी पदाधिकारी नियुक्तीपञ वाटप कार्यक्रम द युवा ग्रामीण पञकार संघाचे संस्थापक अध्यक्ष पञकार मा.अन्सार शेख साहेब यांच्या अध्यक्षतेखाली व ग्रामीण विकास केंद्राचे संस्थापक अध्यक्ष अँड.डॉ.मा.अरूण (आबा) जाधव साहेब यांच्या मार्गदर्शनाखाली तसेच द युवा ग्रामीण पञकार संघाचे पुणे जिल्हाध्यक्ष पञकार मा.रिजवान बागवान यांच्या मार्गदर्शनाखाली कृषी उत्पन्न बाजार समिती कार्यालय शिरूर या ठिकाणी मोठ्या उत्साहात संपन्न करण्यात आला.



            मराठी दिनदर्शिका २०२४ चे प्रकाशन शिरूर पोलिस स्टेशनचे कर्तव्यदक्ष सहाय्यक पोलिस निरिक्षक मा.अमोल पन्हाळकर साहेब,आजतक हिंदी न्युज चँनेलचे पुणे/अहमदनगर प्रतिनिधी मा.रोहित वाळके साहेब,युवा उद्योजक बंटीशेठ घायतडक,दैनिक लोकनायक वृत्तपञाचे व्यवस्थापक मा.विश्वंभर मुळे साहेब यांच्या शुभहस्ते करण्यात आले.

                सदर कार्यक्रमाच्या प्रमुख उपस्थितीमध्ये राष्ट्रवादी कॉंग्रेस पार्टीचे पुणे जिल्हा उपाध्यक्ष मा.तात्यासाहेब सोनवणे,द युवा ग्रामीण पञकार संघाचे राज्य कार्याध्यक्ष मा.शामभाऊ कांबळे,निमोणे गावचे सरपंच मा.संजय (आबा) काळे,मा.आदर्श सरपंच जिजाताई दुर्गे,देवदैठण गावचे मा.सरपंच मंगलताई कौठाळे,सामाजिक कार्यकर्ते हाजी सादिकभाई बागवान,शालेय व्यवस्थापन समितीचे निर्वी अध्यक्ष मा.प्रदिपभाऊ साळुंकेशरद जोशी विचारमंच शेतकरी संघटनेचे शिरूर तालुकाध्यक्ष मा.नवनाथ गव्हाणे,श्रीपाद उद्योग समुहाचे अध्यक्ष मा.कमलेश बुराडे,द युवा ग्रामीण पञकार संघाचे नगर तालुकाध्यक्ष मा.हेमंत साठे,सदस्य बिभिषण झेंडे आदि मोठ्या संख्येंने होते.यावेळी द युवा ग्रामीण पञकार संघाची शिरूर तालुका कार्यकारणी जाहिर करण्यात आली.तसेच सर्व पदाधिकारी यांना प्रमुख मान्यवरांच्या शुभहस्ते सन्मान करून संघटनेचे अधिकृत नियुक्तीपञ व ओळखपञाचे वाटप करण्यात आले.

             यावेळी द युवा ग्रामीण पञकार संघाचे तालुकाध्यक्ष शकील मनियार,तालुका उपाध्यक्ष विवेकानंद फंड,विश्वनाथ घोडके,तालुका सचिव अक्षय वेताळ,तालुका कार्याध्यक्ष सुजित मैड,तालुका संपर्कप्रमुख विजय कांबळे,तालुका सल्लागार संतोष काळे,तालुका कोषाध्यक्ष मच्छिंद्र काळे,तालुका खजिनदार संजय मोरे,तालुका संघटक सुदर्शन दरेकर,तालुका सरचिटणीस सुनिल काटे,कायदेविषयी सल्लागार एडवोकेट इन्नुस मणियार आदिंना मान्यवरांच्या उपसथितीमध्ये नियुक्तीपञ व ओळखपञाचे वाटप करून कौतुक करून अभिनंदन करण्यात आले.

वाघोली : पुणे शहर के विभिन्न पुलिस स्टेशनों की सीमा के भीतर 21 सेंधमारी, चोरी और डकैतियों में शामिल शातिर अपराधी को क्राइम ब्रांच यूनिट 6 की टीम ने वाघोली में भैरवनाथ तालाब के पास एक खुले मैदान से गिरफ्तार किया।

 


       गिरफ्तार व्यक्ति की पहचान राजन गोपाल नायर (उम्र 33, निवासी उत्तमनगर, पुणे) के रूप में हुई है। पुलिस ने उसके पास से एक चार पहिया वाहन, चार मोबाइल फोन, एक कैमरा कुल मिलाकर 8 लाख 35 हजार रुपये कीमत का माल जब्त किया है।

 

       इस संबंध में मिली जानकारी के अनुसार क्राइम ब्रांच यूनिट छह की टीम जब गश्त कर रही थी तो सूचना मिली कि एक ग्रे रंग की अर्टिगा कार भैरवनाथ झील के पास खुले मैदान में संदिग्ध अवस्था में खड़ी है। पुलिस ने कार का निरीक्षण किया। इस दौरान जब कार में सवार व्यक्ति से उसका नाम-पता पूछा गया तो उसने गोलमटोल जवाब दिया। पुलिस ने जब उससे गहनता से पूछताछ की तो उसने बताया कि उसका नाम राजन नायर है। इसी दौरान जब चार पहिया वाहन की तलाशी ली गई तो कार में विभिन्न कंपनियों के 4 मोबाइल हैंडसेट और एक पैनासोनिक कैमरा मिला।

 

       इस बारे में आगे पूछताछ करने पर उसने बताया कि उसने मोबाइल फोन और कैमरा अलग-अलग जगहों से चुराए थे। उसके खिलाफ कोथरूड, वारजे मालवाड़ी, उत्तमनगर, कोंढवा, फरासखाना, डेक्कन, कोरेगांव पार्क, लोणीकंद आदि पुलिस स्टेशनों में जबरन चोरी, डकैती आदि के 21 मामले दर्ज हैं। साथ ही नायर के खिलाफ 2018 में फरासखाना थाने में मकोका एक्ट के तहत कार्रवाई की गई थी।

वाघोली : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले मराठा आरक्षण के मुद्दे पर महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर गरमाती दिख रही है। सूबे में मराठा आरक्षण का जिन्न फिर बाहर निकल आया है। मराठा आरक्षण को लेकर मनोज जरांगे पाटिल ने अपनी पदयात्रा एक बार फिर शुरू कर दी है। यह रैली अब पुणे में आ चुकी है और वाघोली-खराड़ी से रवाना होकर आगे की ओर प्रस्थान कर चुकी है। 


 

मनोज जरांगे पाटिल की सभा सुबह 4.30 बजे वाघोली में संपन्न हुई। इस सभा में उन्होंने सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि कुछ भी हो जाए हम आरक्षण लेकर रहेंगे। हम निकल चुके  हैं और आरक्षण के बिना वापस नहीं जाएंगे। भगवान भी आ जाएं तो भी ओबीसी मे से आरक्षण देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। हम मराठा 70 साल तक अपने हक से दूर रहे। आरक्षण देने के लिए सरकार को मोहलत दी गई थी, लेकिन इसे लेकर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया इसलिए अंतत: यह कदम हमें उठाना पड़ा अब मराठों की बाढ़ को कोई नहीं रोक सकता है। 

 


कुनबी अभिलेख व्यापक रूप से पाए जाते हैं। इतने सारे रिकॉर्ड होने के बावजूद मराठों को कोई आरक्षण नहीं है और जिनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है उन्हें आरक्षण दिया जाता है। ओबीसी से आरक्षण मराठों का अधिकार है। अब नहीं तो कभी नहीं इसलिए अब पीछे नहीं हटेंगे, ऐसा कहते हुए मुंबई में घुसने की अपील जरांगे पाटिल ने की। मराठों की ताकत क्या है ये अब सरकार को पता चलेगा।

 

न ठंड न अंधेरी रात, अपने मार्गदर्शक के इंतजार में हजारों की संख्या में लोग स‌ड़क पर खड़े नजर आए। जगह-जगह चौक-चौराहे पर अपने नेता के इंतजार में भगवा झंडा लिए उम्मीद भरी नजरों से लोग राह देख रहे थे।

वाघोली : मूल भूमि मालिक और बिल्डर के बीच विवाद के कारण आईवी एस्टेट की ओर जाने वाली सड़क खराब होने के कारण लोगों ने इकट्ठा आकर रातोंरात स‌ड़क का निर्माण करा लिया, इस मामले में अब लोणीकंद पुलिस स्टेशन में 9 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। जमीन का विवाद कोर्ट में है ऐसे में जमीन के मालिक ने पहले संबंधित पक्षों के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने पर कोर्ट की शरण में जाने के बाद केस दर्ज कराया गया है।


 

 

      इस मामले में नितिन कुंजीर, सचिन माली, अनिल दिलीप सातव, ज्ञानेश्वर पंढरीनाथ कटके, असलम अब्दुल्ला हाजी, राजेश अनिरुद्ध पाटिल, विजय तांबे, सागर सुखदेव तांबे, सुचित विष्णु सातव के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

 

       इस संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार, आईवी इस्टेट की ओर जानेवाली सड़क खराब होने के कारण 8 सितंबर से 9 सितंबर 2023 के बीच आधी रात को मूल मालिक के विरोध के बावजूद नागरिकों द्वारा इसकी मरम्मत की गई थी। जगह मालिक भालचंद्र सातव ने  लोणीकंद पुलिस व वरिष्ठ अधिकारियों को आवेदन देकर केस दर्ज करने की मांग की थी, लेकिन सिर्फ एनसी दर्ज की गयी। उसके बाद सातव ने प्रथम श्रेणी अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद अदालत के आदेश पर इस संबंध में मामला दर्ज किया गया।

हमारे भारत का इतिहास पिछले लगभग डेढ़ हजार वर्षों से आक्रांताओं से निरंतर संघर्ष का इतिहास है। आरंभिक आक्रमणों का उद्देश्य लूटपाट करना और कभी-कभी (सिकंदर जैसे आक्रमण) अपना राज्य स्थापित करने के लिए होता था । परंतु इस्लाम के नाम पर पश्चिम से हुए आक्रमण यह समाज का पूर्ण विनाश और अलगाव ही लेकर आए। देश समाज को हतोत्साहित करने के लिए उनके धार्मिक स्थलों को नष्ट करना अनिवार्य था, इसलिए विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में मंदिरों को भी नष्ट कर दिया। ऐसा उन्होंने एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार किया। उनका उद्देश्य भारतीय समाज को हतोत्साहित करना था ताकि भारतीय स्थायी रूप से कमजोर हो जाएँ और वे उन पर अबाधित शासन कर सकें।

 


अयोध्या में श्रीराम मंदिर का विध्वंस भी इसी मनोभाव से, इसी उद्देश्य से किया गया था। आक्रमणकारियों की यह नीति केवल अयोध्या या किसी एक मंदिर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए थी।

भारतीय शासकों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, परन्तु विश्व के शासकों ने अपने राज्य के विस्तार के लिए आक्रामक होकर ऐसे कुकृत्य किये हैं। परंतु इसका भारत पर उनकी अपेक्षानुसार वैसा परिणाम नहीं हुआ जिसकी आशा वे लगा बैठे थे। इसके विपरीत भारत में समाज की आस्था निष्ठा और मनोबल कभी कम नहीं हुआ, समाज झुका नहीं, उनका प्रतिरोध का जो संघर्ष था वह चलता रहा। इस कारण जन्मस्थान बार-बार पर अपने आधिपत्य में कर, वहां मंदिर बनाने का निरंतर प्रयास किया गया। उसके लिए अनेक युद्ध, संघर्ष और बलिदान हुए। और राम जन्मभूमि का मुद्दा हिंदुओं के मन में बना रहा।

1857 में विदेशी अर्थात ब्रिटिश शक्ति के विरुद्ध युद्ध योजनाएं बनाई जाने लगी तो उसमें हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर उनके विरुद्ध लड़ने की तैयारी दर्शाई और तब उनमें आपसी विचार-विनिमय हुआ। और उस समय गौ–हत्या बंदी और श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति के मुद्दे पर सुलह हो जायेगी, ऐसी स्थिति निर्माण हुई। बहादुर शाह जफर ने अपने घोषणापत्र में गौहत्या पर प्रतिबंध भी शामिल किया। इसलिए सभी समाज एक साथ मिलकर लड़े। उस युद्ध में भारतीयों ने वीरता दिखाई लेकिन दुर्भाग्य से यह युद्ध विफल रहा, और भारत को स्वतंत्रता नहीं मिली, ब्रिटिश शासन अबाधित रहा, परन्तु राम मंदिर के लिए संघर्ष नहीं रुका।

अंग्रेज़ों की हिंदू मुसलमानों की "फूट डालो और राज करो" की नीति के अनुसार, जो पहले से चली आ रही थी और इस देश की प्रकृति के अनुसार अधिक से अधिक सख्त होती गई। एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने संघर्ष के नायकों को अयोध्या में फाँसी दे दी और राम जन्मभूमि की मुक्ति का प्रश्न वहीं का वहीं रह गया। राम मंदिर के लिए संघर्ष जारी रहा।

1947 में देश को स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब सर्वसम्मति से सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया तभी ऐसे मंदिरों की चर्चा शुरू हुई। राम जन्मभूमि की मुक्ति के संबंध में ऐसी सभी सर्वसम्मति पर विचार किया जा सकता था, परंतु राजनीति की दिशा बदल गयी। भेदभाव और तुष्टीकरण जैसे स्वार्थी राजनीति के रूप प्रचलित होने लगे और इसलिए प्रश्न ऐसे ही बना रहा। सरकारों ने इस मुद्दे पर हिंदू समाज की इच्छा और मन की बात पर विचार ही नहीं किया। इसके विपरीत, उन्होंने समाज द्वारा की गई पहल को उध्वस्त करने का प्रयास किया। स्वतन्त्रता पूर्व से ही इससे संबंधित चली आ रही कानूनी लड़ाई निरंतर चलती रही। राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए जन आंदोलन 1980 के दशक में शुरू हुआ और तीस वर्षों तक जारी रहा।

वर्ष 1949 में राम जन्मभूमि पर भगवान श्री रामचन्द्र की मूर्ति का प्राकट्य हुआ। 1986 में अदालत के आदेश से मंदिर का ताला खोल दिया गया। आगामी काल में अनेक अभियानों एवं कारसेवा के माध्यम से हिन्दू समाज का सतत संघर्ष जारी रहा। 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला स्पष्ट रूप से समाज के सामने आया। जल्द से जल्द अंतिम निर्णय के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने के लिए आगे भी आग्रह जारी रखना पड़ा। 9 नवंबर 2019 में 134 वर्षों के कानूनी संघर्ष के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सत्य और तथ्यों को परखने के बाद संतुलित निर्णय दिया। दोनों पक्षों की भावनाओं और तथ्यों पर भी विचार इस निर्णय में किया गया था। कोर्ट में सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद यह निर्णय सुनाया गया है। इस निर्णय के अनुसार मंदिर का निर्माण के लिए एक न्यासी मंडल की स्थापना की गई। मंदिर का भूमिपूजन 5 अगस्त 2020 को हुआ और अब पौष शुक्ल द्वादशी युगाब्द 5125, तदनुसार 22 जनवरी 2024 को श्री रामलला की मूर्ति स्थापना और प्राणप्रतिष्ठा समारोह का आयोजन किया गया है।

धार्मिक दृष्टि से श्री राम बहुसंख्यक समाज के आराध्य देव हैं और श्री रामचन्द्र का जीवन आज भी संपूर्ण समाज द्वारा स्वीकृत आचरण का आदर्श है । इसलिए अब अकारण विवाद को लेकर जो पक्ष-विपक्ष खड़ा हुआ है, उसे ख़त्म कर देना चाहिए। इस बीच में उत्पन्न हुई कड़वाहट भी समाप्त होनी चाहिए। समाज के प्रबुद्ध लोगों को यह अवश्य देखना चाहिए कि विवाद पूर्णतः समाप्त हो जाये। अयोध्या का अर्थ है 'जहाँ युद्ध न हो', 'संघर्ष से मुक्त स्थान' वह नगर ऐसा है। संपूर्ण देश में इस निमित्त मन में अयोध्या का पुनर्निर्माण आज की आवश्यकता है और हम सभी का कर्तव्य भी है।

अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण का अवसर अर्थात राष्ट्रीय गौरव के पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह आधुनिक भारतीय समाज द्वारा भारत के आचरण के मर्यादा की जीवनदृष्टि की स्वीकृति है । मंदिर में श्रीराम की पूजा 'पत्रं पुष्पं फलं तोयं' की पद्धती से और साथ ही राम के दर्शन को मन मंदिर में स्थापित कर उसके प्रकाश में आदर्श आचरण अपनाकर भगवान श्री राम की पूजा करनी है क्योंकि "शिवो भूत्वा शिवं भजेत् रामो भूत्वा रामं भजेत्" को ही सच्ची पूजा कहा गया है।

इस दृष्टि से विचार करें तो भारतीय संस्कृति के सामाजिक स्वरूप के अनुसार

मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्।

आत्मवत् सर्वभूतेषु, यः पश्यति सः पंडितः।

इस तरह हमें भी श्री राम के मार्ग पर चलने होगा।

जीवन में सत्यनिष्ठा, बल और पराक्रम के साथ क्षमा, विनयशीलता और नम्रता, सबके साथ व्यवहार में नम्रता, हृदय की सौम्यता और कर्तव्य पालन में स्वयं के प्रति कठोरता इत्यादि, श्री राम के गुणों का अनुकरण हर किसी को अपने जीवन में और अपने परिवार में सभी के जीवन में लाने का प्रयत्न ईमानदारी, लगन और मेहनत से करना होगा।

साथ ही, अपने राष्ट्रीय जीवन को देखते हुए सामाजिक जीवन में भी अनुशासन बनाना होगा। हम जानते हैं कि श्री राम-लक्ष्मण ने उसी अनुशासन के बल पर अपना 14 वर्ष का वनवास और शक्तिशाली रावण के साथ सफल संघर्ष पूरा किया था। श्री राम के चरित्र में प्रतिबिंबित न्याय और करुणा, सद्भाव, निष्पक्षता, सामाजिक गुण, एक बार फिर समाज में व्याप्त करना, शोषण रहित समान न्याय पर आधारित, शक्ति के साथ-साथ करुणा से संपन्न एक पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना, यही श्रीराम की पूजा होगी ।

अहंकार, स्वार्थ और भेदभाव के कारण यह विश्व विनाश के उन्माद में है और अपने ऊपर अनंत विपत्तियाँ ला रहा है। सद्भाव, एकता, प्रगति और शांति का मार्ग दिखाने वाले जगदाभिराम भारतवर्ष के पुनर्निर्माण का सर्व-कल्याणकारी और 'सर्वेषाम् अविरोधी' अभियान का प्रारंभ, श्री रामलला के राम जन्मभूमि में प्रवेश और उनकी प्राण-प्रतिष्ठा से होने वाला है। हम उस अभियान के सक्रिय कार्यान्वयनकर्ता हैं। हम सभी ने 22 जनवरी के भक्तिमय उत्सव में मंदिर के पुनर्निर्माण के साथ-साथ भारत और इससे पूरे विश्व के पुनर्निर्माण को पूर्तता में लाने का संकल्प लिया है। इस भावना को अंतर्मन में स्थापित करते हुए अग्रसर हो ...

 

जय सिया राम।

 

लेखकः डॉ. मोहन भागवत

(सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)

(मूल मराठी से अनुवाद)

वि.शे. सातव हाई स्कूल वाघोली में श्री राम जागर कार्यक्रम का आयोजन

 

वाघोली, पुणे

सोमवार को अयोध्या में श्री राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। उससे पहले देश के हर कोने में राममय वातावरण हो गया है। ऐसा ही कुछ नजारा पुणे जिला शिक्षा मंडल  के वि.शे. सातव हाई स्कूल व जूनियर कॉलेज वाघोली में देखने को मिला। अयोध्या में आयोजित होने वाले श्री राम प्राणप्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर स्कूल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम श्री राम मूर्ति पूजा विद्यालय के प्राचार्य सनप सर और सभी शिक्षकों ने मिलकर किया। प्राचार्य ने भगवान श्री राम के मर्यादा पुरुष के रूप में कार्य, उनकी गुरु भक्ति, वचन के साथ-साथ रामायण काल ​​में उनके कार्यों के बारे में जानकारी दी।


 

 उन्होने यह भी कहा कि यदि नियमित रूप से घर में शाम के समय रामरक्षा का पाठ किया जाए तो घर में सुख-शांति का वास होता है। छात्रों ने स्कूल के भव्य प्रांगण में "जय श्री राम" अक्षर बनाये और भारतीय अस्मिता जे प्रतीक अराध्य प्रभु श्री राम "जय श्री राम", "श्री राम जय राम जय जय राम, पतित पावन सीता राम", "सियावर प्रभु रामचन्द्र की जय" के जयकारे लगाए। इसके साथ ही अपील की गई कि 22 जनवरी सोमवार को प्रभु श्री राम प्राणप्रतिष्ठा उत्सव के अवसर पर प्रत्येक परिवार को घर पर ही दीपोत्सव मनाना चाहिए। इससे पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। उक्त कार्यक्रम में विद्यालय के आठवीं कक्षा के सभी विद्यार्थियों एवं उनके कक्षा अध्यापकों एवं खेल एवं कला अध्यापकों ने हिस्सा लिया।

इनकम टैक्स कमिश्नर राकेश झा और डी वाई पाटील यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. प्रभात रंजन हुए शामिल

पुणे : मिथिला समाज पुणे के द्वारा अहिल्यादेवी होलकर महिला उद्योग तुकाराम नगर खराड़ी में मिथिला वासियों के साथ मकर संक्रांति त्योहार मनाया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर इनकम टैक्स कमिश्नर राकेश झा और डी वाई पाटिल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रभात रंजन उपस्थित थे। 


 

 मिथिला समाज पुणे के सदस्यों और अतिथियों ने मिथिला वासियों के साथ बैठकर खिचड़ी दही, सब्जी का आनंद लिया । इस मौके पर मिथिली के लगभग 500  लोगों ने एक साथ मकर संक्रांति उत्सव मनाया। अतिथियों का सम्मान मिथिला की शान पाग, शॉल और माला से संस्था के वरिष्ठ सदस्य सुधीर मिश्रा, आर एन झा, बच्चन देव मिश्र एवं प्रेम कांत मिश्रा आदि ने किया। संस्था की अध्यक्ष संगीता पवन चौधरी ने मकर संक्रांति की शुभकामनाएं दी एवं उन्होंने कहा कि मिथिला वासियों के साथ मिलकर उत्सव मनाने में बहुत आनंद आता है।। 

 


प्रीति मिश्रा ने स्वागत गाना गाकर अतिथियों एवं श्रोता का मन मोह लिया। मंच का संचालन ऋषि झा ने किया। इस अवसर पर डी वाई पाटील यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रभात रंजन ने साइंस के क्षेत्र में बहुत सारी बातों की जानकारी दी एवं इनकम टैक्स कमिश्नर राकेश झा ने यूपीएससी की तैयारी करने वाले बच्चों के लिए अलग से टिप्स देने की बात कही। मकर संक्रांति पर्व के संयोजक शम्मी झा ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम में अध्यक्ष संगीता पवन चौधरी सचिव मनोज झा के अतिरिक्त अजय मिश्रा, गणेश झा, जटाशंकर चौधरी, पवन चौधरी, आशुतोष झा उर्फ रॉकी ,प्रिया रंजन झा कौशल झा ,रंजन झा, पंकज झा एवं आशुतोष झा के साथ अनेक सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे। सुधीर मिश्रा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।।

 पहले रचनात्मक संकल्पक  विश्वधर्मी प्रा. डॉ. विश्वनाथ कराड, डॉ. एस. एन. पठाण, पूर्व कुलपति


अयोध्या में श्री राम मंदिर अत्यंत भव्य ७० एकड भूमि पर बनना चाहिए और मुसलमानों को मस्जिद के लिए उचित स्थान पर ५ एकड भूमि मिलनी चाहिए. ऐसा संकल्प विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ कराड ने २०१० में किया. अत्यंत संवेदनशील एवं धार्मिक रूप से विभाजनकारी समस्या के समाधान हेतु प्रो.डॉ. विश्वनाथ कराड ने पुणे, अयोध्या और दिल्ली में विभिन्न धर्मों के सम्मलेन आयोजित किये. इस अवधारणा को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया. श्रीराम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए नियुक्त मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश खलीफुल्लाह का ेभी प्रस्ताव सौंपा गया. उनकी रचनात्मकता सफल हुई और ९ नवंबर २०१९ को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और देश ने राहत की सांस ली. हाई कोर्ट का पूरा सम्मान करते हुए मै कहना चाहूंगा कि प्रो. डॉ. कराड के इस रचानात्मक प्रयास से अयोध्या में ७० एकड भूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हुआ. साथ ही मुसलमानों को मस्जिद के लिए उपयुक्त स्थान पर ५ एकड जमीन दी गई. सुप्रीम कोर्ट फैसले के बाद विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड की प्रतिक्रिया बहुत प्रभावशाली थी. उन्होंने कहा ओह ये भगवान की इच्छा थी कि मंदिर ७० एकड जमीन पर बने. इसमें मैं करनेवाला कोई नहीं हूं. मै तो केवल एक बहाना हूं.  इसी संदर्भ में राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय  के पूर्व कुलपति डॉ.एस.एन.पठान का विस्तृत लेख.


 



यह  घटना करीब १२ साल पहले की है. प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड, डॉ. विजय भटकर और मैं (प्रस्तुत लेखक) एक बैठक के लिए सुबह-सुबह मुंबई के लिए रवाना हुए थे। बाहर झँाकते हुए कराड साहब ने मुझसे कहा, डॉ. पठाण! क्या यह पुणे-मुंबई एक्सप्रेस हाईवे है? हम अपना रास्ता तो नहीं भूल गए? तो मैंने कहा, “नहीं सर! यह एक्सप्रेस हाईवे है”। तब कराड साहब ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘अरे, फिर सड़क पर कोई वाहन कैसे नहीं है? वह दिन ३० सितंबर २०१० था. मैंने कहा, ‘सर, आज ’श्रीराम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद’ पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आने वाला है। मामला बेहद संवेदनशील है और फैसले के बाद देश में गडबडी की आशंका है। दंगे भी हो सकते हैं। इसलिए आज कोई भी यात्रा का जोखिम नहीं उठा रहा है। 


यदि श्रीराम मंदिर बनाना है तो कम से कम ६० से ७० एकड़ जमीन की आवश्यकता होगी। उस २.७७ एकड़ में क्या होगा?अब तक शांत बैठे डॉ. विजय भटकर ने दो टूक कहा, सच तो यह है कि ‘श्रीराम का मंदिर’ का मतलब सभी भारतीयों के लिए ‘मानवता भवन’ है। हमारी काफी चर्चा हुई और हम इस बात पर सहमत हुए कि श्रीराम का भव्य मंदिर भारतीयों के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम मानवता भवन है। इस अवधारणा पर हम तीनों सहमत थे। 


बुद्धिजीवी परिषद में सर्वसम्मति से प्रस्ताव
मुंबई से लौटते ही डॉ. कराड ने पुणे के चुनिंदा वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों, दार्शनिकों और शिक्षाविदों की एक बैठक बुलाई। मुझे अभी भी याद है, उस मीटिंग में २५ से ३० जानकार और वरिष्ठ लोग मौजूद थे। मा. डॉ.रघुनाथ माशेलकर, मा. डॉ. विजय भटकर, मा. डॉ. मोहन धारिया (आज जीवित नहीं), मा. पुणे मेयर श्री राजपाल सिंह और इस्लामिक विद्वान श्री.अनीस चिश्ती आदि विचारकों, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों ने भाग लिया।


श्रीराम मंदिर-बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल पर दो घंटे की चर्चा के बाद हमने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया कि, अयोध्या में विवादित स्थल पर “विश्वधर्मी श्रीराम मानवता भवन” का निर्माण किया जाना चाहिए। यह प्रस्ताव तत्कालीन माननीय द्वारा पारित किया गया था। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, भारत सरकार और मा. गृहमंत्री से लेकर विश्व हिंदू परिषद के मा. श्री अशोक सिंघल, श्री. वेदांती महाराज आदि। सभी को भेजा और आगे मा. कराड सर ने सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने तक इसी संकल्पना पर काम किया. वह इस अवधारणा से भारित थे। 


सरसंघचालक जी से भेंट
प्रस्ताव पर संतोष व्यक्त करते हुए मा.सरसंघचालक भागवत साहब ने कहा कि श्रीराम मंदिर का निर्णय ‘साधु-संत संसद’ करती है और इसलिए मेरे लिए हस्तक्षेप करना कठिन है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से आपके प्रस्ताव से सहमत हूं। खास बात यह है कि उन्होंने हमारे प्रस्ताव को पूरी तरह समझने के लिए हमें एक घंटे का समय दिया था। 


 



    २४ मई २०१४ को ७ लोगों का प्रतिनिधिमंडल प्रो. डॉ. कराड सर के नेतृत्व में अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। इस प्रतिनिधिमंडल में मा. डॉ. कराड सर, डॉ. विजय भटकर, डॉ. संजय उपाध्ये, डॉ. सुचित्रा नागरे और मैं शामिल थे। 


रामलल्ला के दर्शन के लिए कड़ी सुरक्षा
हम प्रातःकाल श्रीराम-लल्ला के दर्शन करने गए। श्रीराम जन्मभूमि में प्रवेश के दौरान कड़ी सुरक्षा थी. हर व्यक्ति को जांच के बाद ही अंदर जाने दिया गया। अंदर जाने के बाद हमें लगा कि हमारा रास्ता लोहे के पिंजरे से होकर गुजर रहा है। इसके अलावा हथियारबंद गार्ड हमारे साथ चल रहे थे। यह ऐसी स्थिति थी कि कोई भी आश्चर्यचकित हो सकता था कि १०० करोड़ हिंदुओं की श्रद्धा और आस्था के केंद्र श्री रामलल्ला के दर्शन की ऐसी व्यवस्था कैसे की जा सकती है। संपूर्ण रक्षा प्रणाली एक प्रकार से तनावपूर्ण थी।


विश्वधर्मी श्रीराम मानवता भवन
२१ मार्च २०१७ को देश की सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया कि श्रीराम मंदिर और बाबरी मस्जिद का मसला कोर्ट के बाहर सुलझाया जाए। उस समय विश्वशांति केन्द्र की ओर से प्रो. डॉ. कराड सर ने सुप्रीम कोर्ट में इंटर्वेन्शन पिटीशन दायर की थी और सुप्रीम कोर्ट ने हमारी सभी दलीलें सुनीं, लेकिन इतनी विलंब से याचिका मान्य करने से इनकार कर दिया। दुर्भाग्य से, चूंकि तीन याचिकाकर्ताओं यानी रामलल्ला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच कोई समझौता नहीं हुआ, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अंततः एक मध्यस्थ समिति नियुक्त करने का फैसला किया।


दिल्ली में सम्मेलन का आयोजन
दिल्ली में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में मैं स्वयं, मा. आरिफ मुहम्मद खान, मा. वेदप्रताप वैदिक, श्री. राम विलास वेदांती महाराज, प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड, मा. डॉ. विजय भटकर एवं मा. श्री. वहीदुल्लाह अंसारी इन महानुभावों ने कहा कि, दुनिया में विभिन्न धर्मों की शरणस्थली भारत को दुनिया के सामने भारतीय संस्कृति का आदर्श रखना चाहिए और २१ वीं सदी में भारत ‘विश्व गुरु’ बनने जा रहा है, इसे ध्यान में रखते हुए ६७.३ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि के साथ-साथ विवादित २.७७ एकड़ भूमि पर सरकार, कुल ७० एकड़ भूमि पर ’विश्वधर्म श्रीराम मानवता’ का भवन खड़ा कर एक आंतरराष्ट्रीय भव्य स्मारक बनाया जाए ऐसा अभिनव विचार दिल्ली में इस सम्मेलन में विश्वनाथ कराड सर ने प्रस्तुत किया। यह सम्मेलन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर २ अक्टूबर २०१७ को ‘कांस्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्ली’ में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में कई कुलपति, सेवानिवृत्त चार्टर्ड अधिकारी, सेवानिवृत्त राजदूत, पत्रकार, वैज्ञानिक और कई बुद्धिजीवी उपस्थित थे। (आज जीवित नही) उस समय सर्वसम्मति से अयोध्या में ७० एकड़ भूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर (श्रीराम भवन) बनाने और मुसलमानों के लिए ५ एकड़ भूमि देने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
३० सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल
प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड की अध्यक्षता में एक प्रतिनिधीमंडल फिर अयोध्या पहुँचा। इसमें अनेक धर्मों के गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित थे।

 १८ मार्च २०१९ को मा. सुप्रीम कोर्ट ने (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति खलीफुल्लाह साहब की अध्यक्षता में एक मध्यस्थता समिति नियुक्त की। मा. कराड साहब ने विश्वशांति केंद्र की ओर से खलीफुल्लाह समिति को एक प्रस्ताव सौंपा कि ७० एकड़ भूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण किया जाए और मर्यादा पुरूषोत्तम ‘श्रीराम मानवता भवन’ के नाम पर ‘पवित्र कुरान ज्ञान भवन’ यानी मस्जिद के लिए ५ एकड़ जमीन दी जाए. विशेष रूप से, १५ जून २०१९ को (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति मा. खलीफुल्ला साहब ने हमें मीटिंग के लिए लखनऊ बुलाया। उस समय मा. (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति खलीफुल्लाह मा. डॉ. विश्वनाथ कराड साहब, डॉ. विजय भटकर, श्री. आरिफ मोहम्मद खान, डॉ. चंद्रकांत पांडव, डॉ. राजीव शारदा, डॉ. अनामिका वडेरा और मैं डॉ. एस. एन. पठान हम मौजूद थे। मा. कराड साहब ने ‘श्रीराम मानवता भवन’ का प्रस्ताव विस्तार से प्रस्तुत किया। सरकार द्वारा अधिग्रहीत ६७.३ एकड़ भूमि श्री राम मंदिर के लिए खोली जाए तथा पूर्व में विवादित २.७७ एकड़ अर्थात कुल लगभग ७० एकड़ भूमि पर भव्य श्री राम मंदिर (श्रीराम मानवता भवन) तथा ५ एकड़ भूमि दी जाए। मुस्लिम भाईयों को उचित स्थान पर पवित्र कुरान ज्ञान भवन हेतु पुनः इस प्रस्ताव पर जोर देते हुए सभी सदस्यों के साथ प्रस्तुत किया गया। हमारे प्रस्ताव को सुनने के बाद, मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष (सेवानिवृत्त) न्यायाधीश माननीय ने कहा कि उक्त प्रस्ताव एक बहुत ही ‘अध्ययन योग्य प्रस्ताव’ और ‘उत्तम प्रस्ताव’ है। 


बोया हुआ मीठा बीज पेड़ बन गया
इसके बाद मा. मुख्य न्यायाधीश मा. रंजन गोगोई की बेंच ने जिसमें  मा. न्यायमूर्ति शरद बोबडे, माननीय न्यायमूर्ति डी. वाई चंद्रचूड़, माननीय. न्यायमूर्ति अशोक भूषण एवं मा. जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे, उनकी की बेंच ने ९ नवंबर २०१९ को अपना फैसला सुनाया और कई सालों से देश की गर्दन पर बैठा ये मुद्दा हमेशा के लिए सुलझ गया। कोर्ट के फैसले का पहला हिस्सा यह था कि केंद्र सरकार आसपास की ६७.३ एकड़ अधिग्रहित जमीन और विवादित २.७७ एकड़ जमीन में से कुल ७० एकड़ जमीन श्री राम मंदिर को दे और ५ एकड़ जमीन श्री राम मंदिर को दे.” महत्वपूर्ण स्थल पर मुस्लिम भाइयों का इबादतगाह है।
२०१० से अयोध्या में श्रीराम मंदिर ७० एकड़ जमीन पर बनाया जाए और मस्जिद के लिए ५ एकड़ जमीन मुसलमानों को दी जाए, इस संकल्पना की पहल डॉ. विश्वनाथ कराड सर ने पहली बार की। इसके लिए पुणे, अयोध्या और दिल्ली में सम्मेलन आयोजित किए गए। इस संकल्पना को सर्वोच्च न्यायालय एवं मा.न्यायालय में प्रस्तुत किया गया । श्रीराम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर मध्यस्थ समिति के अध्यक्ष रहे (पूर्वं) न्यायमूर्ति खलीफुल्लाह को प्रस्ताव सौंपा गया। उनकी रचनात्मकता सफल हुई और ९ नवंबर, २०१९ को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और देश ने राहत की सांस ली। मा. उच्चतम न्यायालय का पूरा सम्मान करते हुए मैं कहना चाहूँगा कि प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड सर के इस रचनात्मक प्रयास के कारण अयोध्या में ७० एकड़ भूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हुआ है और मुसलमानों को मस्जिद के लिए ५ एकड़ भूमि दी गई है।


कराड साब! आप को जल्दी आना था!
अयोध्या बाबरी मस्जीद के विवाद पर पहले याचिका दायर करनेवाले श्री. हाशिम अंसारी का घर बहुत करीब था। मीटिंग हॉल में अंसारी साहब को ऐसा लगा जैसे शरपंजरी गिर पड़ी हो। वे बीमार थे। एक-दूसरे का परिचय (सलाम दुआ) कराने के बाद कराड साहब ने कहा, अन्सारी साहब, आज रामलल्ला का दर्शन करके मन बहुत व्यथित हुआ। उस पर हाशिम अंसारी जी ने कहा, कराड साहब आपने बहुत देर कर दी। मैं रामलल्ला को धूप में नहीं देख सकता। यह कहकर वे रोने लग गए। हाशिम अंसारी को श्रीराम मंदिर के लिए रोते हुए देखकर मा. कराड साहब भी अपने आंसू नहीं रोक पाए और फिर हम सभी की आंखों से आंसू बहने लगे।


 





sunil

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget