“रणवारी” टीम ने 61 घंटे में पूरी की देहू-आलंदी-पंढरपुर की दूरी

"रणवारी- एक दौड़ पांडुरंग से मिलने के लिए, स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के लिए

 

पुणे : आठ सौ वर्षों से भी अधिक समय से एक निश्चित समय में ढाई सौ किलोमीटर की दूरी तय करने की यह अद्भुत परंपरा विश्व में अद्वितीय है। इस वारी ने महाराष्ट्र के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध किया है। इसी समृद्ध संस्कृति को और उंचाईयों पर ले जाने के लिए कुछ धावकों ने लगातार दौड़कर 250 किमी की यह दूरी महज ढाई दिन में पूरी की है। यह दौड़ गुरुवार दोपहर 2 बजे शुरू हुई और शनिवार रात 3 बजे पंढरपुर पहुंची।


 

देहू-आलंदी से पंढरपुर तक की लगभग ढाई सौ किलोमीटर की दूरी को दौड़कर पूरा करने का संकल्प था, जिसे रणवारी टीम ने पूरा किया। इस परंपरा को स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण से जोड़ा "पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ" के संदेश को ध्यान में रखते हुए, धावकों और उनके साथ आए स्वयंसेवकों ने सड़क किनारे वृक्षारोपण गतिविधि शुरू की और दो सौ से अधिक पेड़ लगाए।

 

इस वर्ष की रणवारी को एवरेस्ट शिखर पर चढ़ने वाली अपर्णा प्रभुदेसाई और पांच गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक साइकिलिस्ट प्रीति म्हास्के और पीसीएमसी धावक अवनीश उपाध्याय ने झंडी दिखाकर रवाना किया। देहू मंदिर के अध्यक्ष ह.भ.प. पुरुषोत्तम मोरे महाराज सहित मंदिर के समस्त ट्रस्टी उपस्थित थे।

 

दोपहर 2 बजे तेज धूप में शुरू हुई यह वारी शाम 5 बजे देवाची आलंदी पहुंची। संत ज्ञानेश्वर महाराज संजीवन समाधी का दर्शन कर शाम छह बजे पालकी मार्ग से रणवारी मार्गस्थ हुए। रात 1 बजे दिवेघाट पहुंचकर सभी ने खाना खाया और 20 मिनट आराम करने के बाद सुबह 7 बजे टीम जेजुरी पहुंचीं। सुबह आठ बजे ही तेज धूप के कारण धावक थकने लगे थे। लेकिन क्रू टीम अच्छी थी, हर धावक का ध्यान रख रही थी और दूरी तय कर रही थी। इस वर्ष रणवारी का मुख्य संदेश स्वास्थ्य को बनाए रखने, पेड़ लगाने – पेड़ बचाओ के साथ-साथ अपने पर्यावरण की रक्षा करना था। जिसके चलते रणवारी टीम दोपहर में नीरा नदी के किनारे पाडेगांव पहुंच सड़क किनारे पेड़ लगाए। वहां खाना और नहाने के बाद निकले और रात करीब 12 बजे सभी धावक फलटन पहुंचे।


 

10 जून को फलटन के आयरनमैन डॉ. प्रणिल भोइटे ने 120 किमी की दौड़ में हिस्सा लेने वाले सभी धावकों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इन तीनों दिनों में भीषण गर्मी से जूझते हुए सभी धावक पंढरपुर की ओर दौड़ रहे थे। पूरी दौड़ में 62 घंटे में से सिर्फ 5 घंटे की नींद लेना और उसमें दौड़ना ज्यादा चुनौतीपूर्ण था। रविवार सुबह सभी धावक पंढरपुर में दाखिल हुए। सुबह विठुमौली का दर्शन करने के बाद भक्त निवास स्थान में दौड़ पूरी करने वाले सभी धावकों और टीम का सम्मान समारोह आयोजित किया गया।

 

इस दौड़ को पूरी करने वाले सिदगोंडा पाटिल ने कहा कि दौड़ पूरी करने के लिए शारीरिक ताकत के साथ-साथ मानसिक और भावनात्मक ताकत की भी जरूरत होती है।

"भक्ति रन में पहली बार हिस्सा लेने वाले मनोज कुलकर्णी का कहना है कि यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय क्षण है।"

 

सागर हेमाड़े का कहना है कि काम की व्यस्तता के चलते वे वारी नहीं जा पाते थे, लेकिन इस साल रणवारी पहल के चलते हमारी वारी बड़े हर्षोल्लास के साथ पूरी हो रही है।"

 

इस वर्ष देहू-आलंदी-पंढरपुर 250 किमी की पूर्ण दौड़ में नौ धावकों ने हिस्सा लिया।

महाराष्ट्र से सात, चेन्नई से शिवा रवि और बैंगलोर से विनोद आए थे। पुणे से जनार्दन कत्तुल, सिदगोंडा पाटिल, स्वामीनाथन श्रीनिवासन, नीलेश कुर्मी, नितिन बागुल, भूषण तारक और जालना के राजेभाऊ ढवले ने इस रणॅवारी में हिस्सा लिया। वहीं फलटन से पंढरपुर तक 120 किमी की भक्ति यात्रा में 17 धावकों ने भाग लिया, जिनमें मुख्य रूप से चंद्रकांत जाधव, सागर हेमाडे, आनंदन कुमार, अवनीश कुमार, शेखर गवली, बापुराव कत्रे, मनोज कुलकर्णी, दया शिंदे, अमित शर्मा, अविनाश पाटिल, कमल तिलानी, प्रवीण पाटिल, नितिन गिरी, संदीप कोलपकर, हेमंत राजेशिर्के, सागर इंगले ने भाग लिया।

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